Kahani Zindagi Ki Podcast : भास्कर चंदन शिव की कहानी खूनी कीचड़ । Credit:- BBC Hindi - Shravan Techvision

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Sunday, August 22, 2021

Kahani Zindagi Ki Podcast : भास्कर चंदन शिव की कहानी खूनी कीचड़ । Credit:- BBC Hindi

पाठशाला की घंटी क्या बज गई पूरा माहौल गूंज उठा। आलू की बोरी गिरते ही जैसे आलू गड़गड़ाते हैं। वैसे ही बच्चे क्लास से उछलकर आ गए आगे बढ़े अपने अपने यार दोस्तों के साथ हर कदम वे बच्चों ने सड़क पर किसी और के लिए जगह ही नहीं छोड़ी । ऊंची जाति के छात्र अपने शहर वाले पक्के घरों की ओर चल दिए उनमें से कुछ के पास साइकिल थी उसकी बार-बार बजती ट्रिंग ट्रिंग के सहारे भीड़ से मौका पाने की कोशिश करते घर पहुंचने को ओढ सी लगी हुई थी। सड़क चलती छात्राओं के चहचहाने से माहौल ऐसा बन गया था मानो अनेकों चिड़िया एक साथ चूं चूं करके आगे बढ़ चली हो। हम सब इसी निबध्य के अलग अलग पात्र थे लेकिन थोड़े से अलग अलग। देहात के मेरे जैसे छात्रों की चुनौती कुछ और थी। कोई अपनों की राह देख रहा था किसी ने मिल जाए उस रास्ता का सहारा लिया, तो किसी ने साथ लाए रोटी प्याज को खाने के लिए किनारा ढूंढ लिया। मैं इस सब में अपनी पसोपेश में था आसपास की भीड़ ने मेरे मन पर बोझ सा डाल दिया । वैसे हफ्ते के पहले दिन बाजार की रौनक कुछ और ही होती थी। हर कोई हप्तेभर की खरीद को ढो रहा होता था। किसी के कंधे पर धान, कहीं पर मवेशी, लेकिन हर किसी को बस पहुंचने की जल्दी होती थी। पैर जिस गति से चल रहे थे दिमाग उससे तेज दौड़ रहा था, माई और बापू कई बार इस भीड़ की डरावनी चेहरे को याद दिलाती सचेत कर चुके थे। बाबू सुनो, थोड़ा संभल कर चलना पिछले सोमवार को बाजार के समय जैसा हुआ वैसा न होने देना। स्कूल की कोई क्लास छूटती है छूट जाए तुम खुद पर ध्यान दो कोई ठीक ठाक जगह देख लेना ठेला लगाने के लिए हां हां देख लूंगा इतना कह कर मैं चल देता हमेशा की तरह स्कूल के रास्ते में बहती नदी के किनारे से सटी सड़क थी वहां तक पहुंचने पर मैं थैली से अंग्रेज़ी की किताब निकल कर उसके शब्दों को मैं रटने लगता कभी मेरे दोस्त साथ होते कभी इतिहास की पढ़ाई होती तो कभी हिंदी की आधी सड़क पार होते होते एक रट्टा तो जरूर पूरा हो जाता । रोटी को पोटली को स्कूल के थैले में डालकर मैने चारों ओर नजर घुमाई हर कोई अपनी ही धुन पर सवार था चाय वाले की केतली खनकते हुए अपने मालिक की कारोबार का आगाज कर रही थी बेचते लाइट की चमड़ी को पसार मोची अपनी दुकान सजा रहे थे बर्तन वाले की दुकान से खन खन की आवाज आ रही थी थोड़ी कवायत के बाद मुझे मन मुताबिक देखी गई बाजार के एक किनारे की इस जगह पर अपना थैला रखा थैले में से कपड़ा निकल उसे जमीन पर उढ़ा दिया और वजन के लिए पास ही के तीन पत्थर तीन दिशा में रख दिए मन में जगह को लेकर थोड़ा शक था इसीलिए बगल में कील फंसा रहे चाचा को पूछा की "इस जगह पे किसी का दावा तो नही है?" करना क्या है? मेरे तरफ बिना देखे ही ऊंची आवाज में उसने पूछा । उसका स्वर तभी चुभ गया था लेकिन वो नजरअंदाज करते हुए मैने जवाब दिया-"कुछ खास नहीं" । कौन गांव के हो? चाचा के स्वर में अकड़ बड़ी हुई थी लगा की उसकी अकड़ को नजर अंदाज कर मुझे जगह हथियानी चाहिए लेकिन अब बात शुरू हो ही चुकी थी तो मैंने भी थोड़ा जोर देकर कहा हस गांव से हूं किनारे हो जाओ मेरे पसरे हुए कपड़े देखकर वो बोला बात चीत होने पर मैं अपनी जगह पर लौटा और खाने के लिए रोटी खोल दी एक एक निवाला चबा रहा था लेकिन ध्यान स्कूल के थैले से निकली किताब पर ज्यादा था बगल वाले चाचा अबतक ज़मीन में कील फसाने के बाद उसपर रस्सी कस चुके थे। उनकी नजर जैसे ही मेरे स्कूल के थैले पर गई उन्होने पूछा स्कूल जाते हो? हां कहां तक पढ़े हो?
इस साल मैट्रिक देनी है अच्छा तब तो मुश्किल है चाचा की बात मुझको अखर गई वो आगे बात करना चाह रहे थे लेकिन मेरा मन नहीं कर रहा था निवाला चबाने के बहाने मैं चुप हो गया मुश्किल है, चाचा के इस ताने ने मुझे शान्त करा दिया था मेरा निवाला गले में फंस गया मैं किताब के पन्ने पलट कर उस पाठ तक पहुंचा जो अब मेरे कानों में दस्तक दे रहा था किताब पर छपी एक एक लाइन अब जैसे सामने नाच रही थी वहां लिखा था किसान के मॉल को शहर में लाने पर मुनिशिपाल्टी टैक्स वसूला जाता है ये टैक्स किसी छल से कम नहीं कई बार तो आमदनी से टैक्स भारी पड़ता है ऐसे में किसान के लिए घर परिवार के सामने सिर को पीटने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता । यही वसूली के मुखिया किसान की नेतागिरी करें तो जरा सोचिए किसान का भला कैसे मुमकिन होगा जोतिबाफुले केखे शब्द मेरे आंखों से दिल में उतर रहे थे दिल अपने आप ही सवाल कर रहा था हर सोमवार मेंरा परिवार भी तो अपने मॉल को बाजार में चिल्ला चिल्ला कर बेचता है लेकिन अंत में क्या बस खाली हाथ 
तभी मेरी माई दिख गई इस उम्र में थैले का बोझ उठाकर वो मिर्ची के ढेर के पीछे से चली आ रही थी मैंने आगे बढ़कर बोझ को अपने पास कर लिया माई की सांस फूल गई थी वो बोली भाबू थोड़ा संभल कर अचानक बोझ उठाकर कहीं पेट दर्द न शुरू करा लेना चलते चलते प्यास का बोझ लेकर वो मेरे पसारे हुए कपड़े के तक पहुंची सारा मॉल बेचने लायक था बाबू पीछे पीछे आ धमके उनके उठाए बोझ को माई ने उतार लिया वहां का नजारा देख कर मैं स्तब्ध रह गया वहां प्याज टमाटर का ढेर लगा था इतना सारा मॉल उठा कर लाने वाले बाबू के प्रति मेरा मन कृतज्ञता से भर गया टमाटर पर खरोंच न आए इस पर बापू ने हर टमाटर क्या इतना ख्याल रखा था मानो अपनी औलाद हो। टमाटर भी ऐसे भरे हुए कि चार में ही एक किलो भर जाए बापू ने एक बोरी खोल दी दूसरी पत्तों से ढक दी साथ में तराजू लगा दिया पूरी तैयारी होने के बाद बापू ने उम्मीद भरी आंखों से पूरे बाजार को निहारा। उनकी नजर उदासी से भर गई वो बोले जहां देखो लाले लाले। बाजार में बिकने के लिए ज्यादातर टमाटर आए थे बापू ने मुझे सौदे की सीख दी कुछ रुपए हाथ में थमा दिए फिर वो उठ खड़े हुए और ग्राहक को बुलाने के लिए जोर से चिल्लाए ले लो ले लो सस्ता टमाटर ले लो लाल लाल टमाटर ले लो ।

अपनी आवाज में बापू सस्ता शब्द पर जोर दे रहे थे बापू जब रुक जाते तो माई पुकारना शुरू कर देती इस दौरान मैं अपनी जगह पर पहुंच गया दिल तो माना कर रहा था लेकिन मजबूरी थी सो दुकान लगा दी ये लग गए मेरे ।
चाचा आज टिंडे किस भाव से बिकेंगे उस चाचा ने अपने सामने लगी हर मिर्च का ढेर ठीक ठाक किया फिर बोला देखो बेटा बैठे बिठाए मॉल थोड़े न बिकने वाला है थोड़ा दम तो लगाना पड़ेगा चुप बैठोगे तो सारे मॉल को वैसे ही ले जाना पड़ेगा जैसे लेकर आए थे बाजार में जो आवाज ज्यादा लगाएगा उसका तो पत्थर भी बिक जाएगा। और जो चुप रहेगा उसका सोना भी कोई नही खरीदेगा। समझे तुम ?
अगली बात पूरा कर सामने वाले चाचा ने आवाज लगाई मिर्च ले लो मिर्च सस्ती और हरी हरी मिर्च चढ़ते सूरज के साथ बाजार में रौनक भर आई थी इस बीच चिर पर चिर आवाज की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित हुआ आवाज मेरे बापू की थी और साथ में मेरी माई।
मेरा मन भी कहता चल आगे बढ़ दे आवाज लेकिन शर्म आड़े आ जाती तभी बापू की आवाज सुनाई दी आ जाओ आ जाओ सस्ते टमाटर ले लो मस्त रस हरे टमाटर ले लो बापू की पुकार सुनकर आने वाले ग्राहक से उल्टा बापू का गुस्सा बढ़ ही रहा था क्योंकि ग्राहक टमाटर को उलट पुलट देते, दबाते और आधे दाम में न मिलने पर मॉल वहीं पर छोड़ कर आगे बढ़ते मजबूरी में बापू गुस्से को पी जाता और मॉल से छेड़ छाड़ करने वाले ग्राहकों से बड़ी अदब से कहता छोड़ दीजिए रहने दीजिए बाबू जी अगले समय आना और सस्ता मिलेगा । ग्राहक ना नुकुर करता और चल देता ग्राहक की पीठ दिखते ही बापू माई पर चिल्लाते अरे चुप क्यों बैठी है चल शुरू हो जा आवाज दे उनके चढ़े सुर का रुख फिर मेरी तरफ होता मुझपर चिल्लाकर बापू कहता क्या रे नालायक बैठा है चल उठ आवाज लगा मैं फिर मन मसूस के जोर से चिल्लाता ले लो ले लो ताजा तरकारी ले लो सस्ते टिंडे ले लो ले लो सस्ते टिंडे ले लो सस्ते टिंडे । दिल कहता मुझे कोई परिचित देख न रहा हो जैसे ही मैं आवाज देकर रुकता आंखे खोल देता और फिर से जगह पर बैठ जाता ।
बापू एक बात पूछनी थी ? बोल तो सही रहने दो तुम गुस्सा हो जाओगे चल आ जा इधर आ जा इतना कहकर बापू ने पास खींच लिया इससे पहले शायद कभी ऐसा हुआ हो बापू 10वीं पास होने तक मुझे इस बड़े शहर में रहने दो न मेरी गुजारिश सुन बापू भारी आवाज में बोला 
देखो बेटा कौन नहीं चाहता की तू पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाए साहब बन जाए लेकिन इतना कहकर बापू चुप हो गया मुझे बड़ी ग्लानि सी महसूस हुई मन कह रहा था मुझे यह विषय छेड़ने की जरूरत ही क्या थी। बापू फिर माहौल बदलने के लिए माई से बात छेड़ दे अजी सुनती हो सोचता हूं कि एक भैंस बेंच देते हैं मां चौंक गई क्यों अरे भैंस तो फिर कभी ले लेंगे लेकिन बेटे की 10वीं की पढ़ाई ज्यादा जरूरी है वो छूटी तो क्या हाथ लगेगा इस तर्क से साथ बापू का गला भर आया लेकिन पता नहीं क्यों बापू ने अपनी ही बात बदल दी फिर कहा वैसे भी पढाई लिखाई का क्या ठिकाना है नौकरी मिलेगी ही इसका क्या भरोसा उससे अच्छा है कि भैंस की एक और जोड़ी लगा लेते हैं दूध दुहने के काम तो आयेगी बापू की बात में इस बार निश्चय था कल किसने देखा है लेकिन बापू की बात मुझ पर भारी पड़ रही थी मैंने चुप चाप सुन लिया बापू मेरे पास आकर बुदबुदाए देखो बेटा आज तुम हो इसलिए तुम्हारे शिक्षक, दोस्त यार यहां से खरीददारी करते हैं माना कि पढ़ाई कभी बर्बाद नहीं होती लेकिन हाथ की तंगी बड़ा मसला है तेरी माई इसे नहीं समझ पाएगी तुम चाहो तो एक और ठेला लगा लो बापू ने अपना आखिरी प्रस्ताव रख दिया । बापू की बात अपनी जगह थी मेरा मन उससे मान नहीं रहा था मेरे रहते मिलने वाले ग्राहक और उससे होती कमाई बापू को फिलहाल ज्यादा अहम थी । मेरे लिए तो वो इक बोझ था स्कूल और हॉस्टल के मेरे साथी मुझसे मॉल खरीदते तब उनकी आंखों में उपकार का भाव झलक जाता जो मुझे चुभता ।
परिवार के बोझ हल्का करने के लिए बापू को मुझसे मदद हो रही थी लेकिन मुझे ये नामंजूर था। मैं मन लगाकर पढ़ता और रह रह कर कोसता । ऐसे में बाजार समेटने का वक्त हो चला था लोग अपने अपने मॉल को बेंच कर निकलने की फिराक में थे और ग्राहक हालत भांप कर और अधिक मोल भाव करने लगे थे उन्हे पता था कि किसानी का मॉल अब जितने सस्ते में बिकेगा तो ले लेना है वरना इसे जाना तो कूड़ेदान में ही हैं बापू के माथे पर इसी माहौल ने शिकन पैदा कर दी थी उसके उगाए टमाटर बमुश्किल बिके थे मोल भाव करते वक्त बापू का दिल पसीज जा रहा था वजन कांटे पर हांथ थर्रा रहे थे दो रुपए किलो टमाटर शाम होते होते एक रुपए किलो के दाम बिक जाए इस लिए बापू की आवाज और ऊंची चल रही थी बाजार लंबा हो चला था बहुत सारे ठेले उठा ले गए जो बचे थे वे समेटे जा रहे थे लेकिन बापू ने उम्मीद नहीं छोड़ी और वो अब भी ऊंची आवाज में पुकार रहे थे बारह आना ले लो टमाटर एक किलो बारह आना लेकिन किसी को न पड़ी थी लोग बापू को दूर से निहारते और आगे बढ़ जाते उसने अब और जोर लगाकर जोर से चिल्लाना शुरू किया बारह आने का अब आठ आना ले लो टमाटर एक किलो आठ आना, आठ आना फिर भी ग्राहक नहीं आ रहे थे शाम के बाद अंधेरा पसर गया अब बाजार सुन सान था बापू का मन मात्र इसकी सुध लेने को तैयार नहीं था वो अब भी तराजू उठाकर पुकारते जा रहे थे ऐसे में एक ग्राहक बापू की ओर रुख किया कित्ते में हैं ये टमाटर , टमाटर की नई बोरी खुलवाकर उस ग्राहक से पूछा साथ ही मे दो-चार टमाटर उठाकर ऐसे उछाले मानो गेंद हो आठ आने, आठ आने एक किलो बापू उसी आवाज में बोला वो तो ठीक है लेकिन बेंचोगे कितने में? ग्राहक के सवाल से बापू का माथा ठनका मतलब? बता तो रहें हैं आठ आना किलो। बापू ने तीखे स्वर में पूछा अरे असली में कितने दोगे? ग्राहक का सवाल एकदम टेंढ था बापू के माथे पर गुस्से से पसीना जम गया आंखों से खून उतर आया फिर भी उन्होंने ग्राहक से नरम सुर में पूंछा कितने टमाटर लोगे ? ठीक ठाक भाव लगाओगॆ तो पाव किलो ले लूंगा ग्राहक ने कहा दो तीन टमाटर उठाए और तराजू में डाल दिए ऊपर से कहा आठ आना नहीं चार आना किलो से दे दो अब बापू से रहा न गया उसके शरीर में सहरल थी आंखों से अंगार उबल रहे थे वो खट से खड़ा हो गया और ग्राहक से पूछा क्या चार आना किलो चाहिए ? अबे! वो राक्षस की औलाद चल भाग यहां से बेशर्म कहीं का ।
बाबू का यह कदम देखकर ग्राहक दो कदम पीछे होकर वहां से चले जाना बेहतर समझा । ग्राहक की नजर से ऊंचा होने के वावजूद बापू जस का तस खड़ा था उसके गुस्से में रत्तीभर का फर्क नहीं आया था आंखें अब भी लाल थी खुद के उगाए लाल लाल टमाटर जैसे ही लाल आंखे वो चिल्लाने लगा उसी जगह पर चीखने लगा चार आना किलो क्यों बीस पैसे किलो ले लो दस पैसे किलो ले लो पांच पैसे किलो ले लो अरे इससे तो अच्छा है कि मुफ्त ही ले जाओ मुफ्त ही ले जाओ गुस्साए बापू ने अचानक अपने सारे टमाटर जमीन पर पसार दिए ये लो । दो बोरी भर कर लाए टमाटर बापू के इर्दगिर्द थे टमाटर का छोटा टीला सा बन गया था बापू के खुलने तक का बापू ने आव न देखा ताव जोर से चिल्लाकर टमाटर कुचलना शुरू किया मानो वो खुद पर गुस्सा निकल रहे हों बापू के गुस्से से टमाटर जगह जगह पिघल गए उनके ठेले के पास की सारी जमीन खून सी लालम लाल हो गई कीचड़ भी लालम लाल था और बापू, बापू उसी में नाचे जा रहा था । 

भास्कर चन्दन शिव की यह कहानी लाल चिखल यानी खूनी कीचड़ आपको कैसी लगी हमें जरूर बताएं।

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